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Monday, September 28, 2009

सुरों की लता


अब तक न जाने कितना कुछ कहा,और सुना गया होगा लता जी के लिए,और मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि आने वाले कई वर्षों तक ये सिलसला यूँ ही जारी रहेगा । मेरे पास कहने को यूँ तो कुछ ज़्यादा नहीं है, पर जितना कुछ सुना, पढ़ा है वही यहाँ लिख रहा हूँ । मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में 28 सितंबर सन् 1929 को मास्टर दीनानाथ मंगेशकर (ग्वालियर घराना) और शुद्धमति के घर जन्म हुआ नन्ही लता का, जो आज 80 बरस की हो गईं हैं ।


लता जी ने पाँच साल की उम्र से पिता के साथ एक रंगमंच कलाकार के रूप में अभिनय करना शुरु कर दिया था। उन्‍होंने अपना पहला गाना साल 1942 में वसंत जोगलेकर की फ़िल्म ‘हिती हसाल’ में संगीतकार सदाशिवराव नेवरेकर (जो कि दीनानाथ मंगेशकर के मित्र भी थे )के लिए के लिए गाया। लेकिन पिता को उनका फ़िल्मों में गाना पसंद नहीं था,पर नेवरेकर जी ने उन्हें किसी तरह मनाया और गाना रिकॉर्ड हुआ। पर न वो फिल्‍म आई और न गाना रिलीज़ हुआ। उनका शुरुआती जीवन भी काफ़ी प्रेरणादायक है,पिता की मृत्यु के बाद 13 वर्षीय लता के कंधों पर ही घर की ज़िम्मेदारियों ने “ शरण ” ली ।


फिर मराठी फिल्मों में अभिनय शुरू किया,जो कि ज्यादातर मास्टर विनायक (अभिनेत्री नंदा के पिता)द्वारा बनाईं गईं थीं। जबकि उन्हें अभिनय कभी रास नहीं आया। 1947 में मास्टर विनायक का निधन हो गया,और फिर उनका साथ शुरु हुआ मास्टर ग़ुलाम हैदर के साथ।


के.एल सहगल लता के जी प्रिय गायक थे,पर इसे विड़म्बना ही कहिये,कि जिस दिन वो एक रेडियो ख़ास तौर से, उनके गीतों को सुनने के लिए लाईं, उसी दिन उस पर उन्हें उनके प्रिय गायक की मृत्यु का समाचार सुनना पड़ा ।


जीवन के इतने उतार चढ़ाव को देख चुकीं लता जी, न सिर्फ़ संगीत में उनके योगदान के कारण याद रखे जाने योग्य है, बल्कि एक प्रेरणा हैं । जिनसे विकट परिस्थिती में भी जीवन को जीने का गुर सीखा जा सकता है।


इस संगीत के सफ़र में, लता जी ने हमें कई खू़बसूरत और यादगार गीत दिये,सलाम उस स्वर कोकिला को जिन्होंने हमें दिया गीतों का ऐसा सदाबहार चमन जो सदाबहार था, सदाबहार रहेगा.............



कुछ दिलचस्प :
: लता जी का असली नाम है “हेमा”, पर पिता ने अपने एक नाटक के किरदार “लतिका ” से उनका नाम लता रख दिया।
: दिलीप कुमार के एक व्यंग के कारण उर्दू सीखी ।
: कुछ मराठी फिल्मों में संगीत भी दिया ।

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