कटवारिया सराय की गली का एक कमरा । कमरे को देखकर ऐसा लगता है कि
बनने के बाद से आज तक वहाँ ताज़ी हवा और सूरज की किरणें नहीं पहुंची है । इसी कमरे में, मै मिलने पहुंचा गोरखपुर के सदानन्द गुप्ता से, जो पिछले नौ साल से आईएएस की तैयारी कर रहें हैं ।
जब मैं पहुंचा तो दिन के लगभग दो बजे थे । सदानन्द अपनी पढाई में मशगूल थे। कमरे व्यवस्थित था जिसमें एक कोने में कुछ किताबें रखीं थी, वहीं दूसरे कोने में एक कैनवास और कुछ रंग रखे हुए थे । सदानन्द ने फर्श पर ही बिस्तर लगाया हुआ था और सामान के नाम पर एक रेडियो और एक चौकी रखी हुई थी ।
सदानन्द ने बताया कि महंगाई इतनी बढ़ गई है कि अब दोनों वक़्त खाना, खाना बन्द कर दिया है।
वे कहते हैं कि "पिछली बार घर गया था तो सत्तू लाया था और शाम के समय उसी से काम चला लेते है"।
वे कहते हैं कि "पिछली बार घर गया था तो सत्तू लाया था और शाम के समय उसी से काम चला लेते है"।
सदानन्द याद करते हैं नौ साल पहले का समय जब वो दिल्ली में आये थे । उस समय वो जितने रूपये में काम चला लेते थे उसके दुगुने में भी अब काम नहीं चल रहा । दूध और जूस का तो स्वाद भी भूल चुका हूं ।
कई दिन से सुकूनभरी नींद को तरसती आँखें उनकी कहानी बयां कर देती है। दो अविवाहित बहनें शादी की उम्र पार कर चुकीं हैं। घरवाले सारी जमा पूंजी उन पर ख़र्च कर चुके हैं । घर से जब भी फ़ोन आता है तो केवल एक ही बात होती है......नौकरी ।
केवल आईएएस ही क्यों? इस सवाल के जवाब में वे थोड़ा गंभीर हो जाते हैं । बताते है कि पिछले 6 प्रसासों में हर बार साक्षात्कार तक पहुँचा हूँ लेकिन हर बार अंतिम सूची में जगह नहीं बना पाया ।
हर बार प्रारंभिक परीक्षा में चयन होने के बाद दोस्त कहते हैं कि इस बार निश्चित ही चयन हो जाएगा, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात।
रूंधे गले के साथ कहते हैं कि इस बार अंतिम प्रयास है और समझ में नहीं आ रहा है कि क्या होगा ?
माताजी को आईएएस का मतलब नहीं पता, वह कहती है कि बेटा बड़ा बाबू नहीं बन पा रहे हो तो छोटा बाबू क्यों नही बन जाते ?
दो बार रेलवे में, और एक बार बैंक में चयन हो चुका है लेकिन सिविल सेवा के मोह के कारण नहीं गए । उम्र इतनी हो चुकी है कि अब किसी नौकरी के योग्य नहीं है। अगर इस बार चयन नहीं हुआ तो क्या करेंगे।
सदानन्द एक फीकी हंसी के साथ कहते हैं कि ऐसा हुआ तो यमराज और छोटा राजन में से ही एक को चुनना होगा ।
माता-पिता के सपने और कुंआरी बहनों के बारे में सोचता हूं तो कलेजा कांपने लगता है और कदम लड़खड़ा जाते हैं । अब खा़ली हाथ घर भी नही जा सकते।
आईएएस बनने के बाद क्या रिश्वत लेंगे? सवाल के जवाब में उनकी मुठ्ठीयां भिंच जाती है और चेहरे पर एक आक्रोश झलकनें लगता है ।
केवल आईएएस ही क्यों? इस सवाल के जवाब में वे थोड़ा गंभीर हो जाते हैं । बताते है कि पिछले 6 प्रसासों में हर बार साक्षात्कार तक पहुँचा हूँ लेकिन हर बार अंतिम सूची में जगह नहीं बना पाया ।
हर बार प्रारंभिक परीक्षा में चयन होने के बाद दोस्त कहते हैं कि इस बार निश्चित ही चयन हो जाएगा, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात।
रूंधे गले के साथ कहते हैं कि इस बार अंतिम प्रयास है और समझ में नहीं आ रहा है कि क्या होगा ?
माताजी को आईएएस का मतलब नहीं पता, वह कहती है कि बेटा बड़ा बाबू नहीं बन पा रहे हो तो छोटा बाबू क्यों नही बन जाते ?
दो बार रेलवे में, और एक बार बैंक में चयन हो चुका है लेकिन सिविल सेवा के मोह के कारण नहीं गए । उम्र इतनी हो चुकी है कि अब किसी नौकरी के योग्य नहीं है। अगर इस बार चयन नहीं हुआ तो क्या करेंगे।
सदानन्द एक फीकी हंसी के साथ कहते हैं कि ऐसा हुआ तो यमराज और छोटा राजन में से ही एक को चुनना होगा ।
माता-पिता के सपने और कुंआरी बहनों के बारे में सोचता हूं तो कलेजा कांपने लगता है और कदम लड़खड़ा जाते हैं । अब खा़ली हाथ घर भी नही जा सकते।
आईएएस बनने के बाद क्या रिश्वत लेंगे? सवाल के जवाब में उनकी मुठ्ठीयां भिंच जाती है और चेहरे पर एक आक्रोश झलकनें लगता है ।
कहते है कि रिश्वत क्यों नही लूंगा । जब ये समाज मेरी बहन की शादी के लिए रिश्वत लेता है और मुझसे विश्वविद्यालय में नोकरी की एवज में रिश्वत मांगी जाती है तो मै रिश्वत क्यों नहीं लूं ।
पिछलें छ: प्रयासों में मैने धौलपुर हाउस में ईमानदारी की बात करने वाले खूब देखे है। ईमानदारी और सादगी की बातें केवल किताबों में ही अच्छी लगती है। अगर आपके पास पैसा हो तो सिद्धान्त अपने आप बन जाते हैं ।
कमरें में रखे कैनवास और रंगों की इशारा करते हुए मैने पूछा कि पेटिंग में रूची थी तो उस क्षेत्र में क्यों नही गए?
यह सुनकर सदानन्द के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ जाती है, और फिर वे यादों के भंवर में डूब जाते हैं । वे कहते है कि ज़िंदगी थ्री इडियटस फिल्म जितनी आसान नहीं होती है।
पिछलें छ: प्रयासों में मैने धौलपुर हाउस में ईमानदारी की बात करने वाले खूब देखे है। ईमानदारी और सादगी की बातें केवल किताबों में ही अच्छी लगती है। अगर आपके पास पैसा हो तो सिद्धान्त अपने आप बन जाते हैं ।
कमरें में रखे कैनवास और रंगों की इशारा करते हुए मैने पूछा कि पेटिंग में रूची थी तो उस क्षेत्र में क्यों नही गए?
यह सुनकर सदानन्द के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ जाती है, और फिर वे यादों के भंवर में डूब जाते हैं । वे कहते है कि ज़िंदगी थ्री इडियटस फिल्म जितनी आसान नहीं होती है।
कितनी रूचि थी पेटिंग में और कितने ही चित्र बनाये थे, लेकिन सब अरमान धरे रह गए । पिताजी ने कहा कि ये चित्रकारी खाली बैठे अमीर आदमियों का चोंचला है, किसी सरकारी नौकरी के लिए प्रयास करो ।
सदानन्द तो एक बानगी भर है, न जाने कितने सदानन्द मुनिरका, कटवारिया सराय और मुखर्जी नगर की गलियों में अपने सपनें खोज रहे है। महज पांच सौ सीटों के लिए लगभग तीन लाख छात्र इस रण में उतरते है । किसी शायर की कही ये पंक्तियां इस समर के लिए कितनी उपयुक्त बैठती है “एक आग का दरिया है, बस डूब के जाना है।“
पोस्ट अरविन्द कुमार सेन द्वारा गई लिखी गई है
अरविन्द कुमार सेन
हिन्दी पत्रकारिता
भारतीय जनसंचार संस्थान,नई दिल्ली
फोन नं. 9716935061
सदानन्द तो एक बानगी भर है, न जाने कितने सदानन्द मुनिरका, कटवारिया सराय और मुखर्जी नगर की गलियों में अपने सपनें खोज रहे है। महज पांच सौ सीटों के लिए लगभग तीन लाख छात्र इस रण में उतरते है । किसी शायर की कही ये पंक्तियां इस समर के लिए कितनी उपयुक्त बैठती है “एक आग का दरिया है, बस डूब के जाना है।“
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अरविन्द कुमार सेन
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भारतीय जनसंचार संस्थान,नई दिल्ली
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